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” आज़ बिना घर वाले भी घर से भगाए जा रहे थे,
मैं महसूस कर रहा था कि मैं बचपन से अमीर हूं। “
मैं तमाम लोगों के खुशियों का जरिया बनना चाहता था। मुझे लगता था कि मैं लोगों के लिए, समाज के लिए, देश के लिए कुछ तो अच्छा करूं पर करना क्या था वो समझ के बाहर था। [read more] हर वक्त कुछ न कुछ सोचता था, हर वक्त प्रयास करता था कि मैं उन सभी आंसुओं को पोछूं जो रोज़मर्रा की वजह से बह रहे थे। ये बात सही है कि मुझे लिखने का शौक है, साहित्य में रुचि है और अच्छा लेखक बनने का तलाश। शायद यही कारण है कि मैं जीवन के 8 साल साहित्य को दिया हूं और कुछ किताबें भी लिखा।
एक ओर व्यक्तिगत संघर्ष तो दूसरी ओर उनकी तकलीफों को देख मेरे आंखो से बहते आंसू और छिपाने के बावजूद भी दिख रही चेहरे की उदासी। मैं साहित्य को चुना और साहित्य ने मुझे बहुत कुछ दिया, बहुत कुछ सिखाया। शायद तभी छोटे – छोटे नेवालों को देखते मासूमियत, सालों का संघर्ष, कई दिनों की सूखी रोटी को पानी में डूबा खाते करीब 70 साल के बुजुर्ग, झिल्ली के अंदर भोजन की तलाश करती उंगलियां, शारीरिक तकलीफों के बाद भी बोझा खींचते हांथ, ऐसी तमाम कहानियां जो की वास्त्विक होते दिखी।
इन तमाम कहानियों के बीच घिरा मैं और दूसरों की मदद करने को बेकाबू मेरे हाँथ जो कांपती उंगलियों को भूल उनकी खुशियों के लिए बेताब हो रही थी। शायद यही कारण था कि मेरे पास सबकुछ होने के बावजूद भी मैं दुखों में, तकलीफों में घिर साहित्य को अपनाने के लिए परेशान था। शायद यही कारण था कि मैं साहित्य को छोड़ नहीं पाया।
इन्हीं सब कारणों से मैं लेखनशाला स्थापित किया और लोगों से जुड़ने के लिए , उनकी मदद हेतु अपनी सारी जमा पूंजी इसी में लगा दिया। मैं चाहता हूं कि आप भी इस मुहिम में आएं और लेखनशाला के इस संघर्ष मे थोड़ी ही सही पर मदद ज़रूर करें।[/read]