सभ दिनसँ होइते एलैए
सभ दिन होइतो रहतै।
सभदिना जिनगी जीबैले
अपन चुनौती दइते रहतै।
अपन चुनौती…।
सभ जुग जोग जोगिया
स्थिति-परिस्थिति गढ़िते रहतै।
सम-विषम, विषम-सम बीच
अनुकूल-प्रतिकूल बनेबैत रहतै।
अनुकूल-प्रतिकूल…।
अनुकूल-प्रतिकूल बनैक पाछू
उठि जिनगी जीवन देखै छै।
जीवन जीव जीन बनैले
संघर्ष जिनगी करए पड़ै छै।
संघर्ष जिनगी…।
सभदिने अनुकूल-प्रतिकूल
रस्सा-कस्सी करैत एलैए।
रस्से-कस्सीटा किए
रग्गड़-घसो करैत एलैए।
रग्गड़-घसो…।
कहियो दिवा निशा दाबि-दाबि
तँ कहियो छाती फारि निशा कहैए ।
भलेँ जाठि जठिया जेठ
तँए कि निशाकर पाछू हटैए।
तँए कि निशाकर…।
राति-दिन एकबट्ट बटिया
दिन-राति नाओं धड़ैत रहैए।
कहियो विषुवत रेख मध्य
तँ कहियो मकर कहबैत रहैए।
तँ कहियो मकर…।
रीत-परिवर्तन होइत-होइत
कर्क सेहो पाशा बदलैए।
माघक हाड़ जाड़केँ
दण्ड काल हँ
सि हँसि कहैए
दण्ड काल हँसि हँसि…।