1-
प्रेम पिपासा हूं
प्रेम पिपासा हूं गगन का पक्षी ।
अंजान दिशा में उडता हूं
एकांकी धड़कन में अपने
तेरा रूप बसाये रखता हूं ।
प्रेम पूर्ण की बनके सरिता
पुष्प प्रेम का ले आओ
चाह लगाए बैठा हूं।
निशि वासर दिल ढूंढ रहा है
निति नाम तुम्हारा रटता हूं ।।
प्रेम पिपासा हूं गगन का पक्षी
अंजान दिशा में उडता हूं।
तृष्णा है जीवन पर भारी
सहम- सहम कर चलता हूं
बसंत ऋतु भर रंग ले आया
पीत रंग में सजता हूं।
पावन प्रीति की इस दुनिया में
प्रेम बिना मैं प्यासा हूं
“अमिया सुधा”हो हिय की मेरे
मृतक बनके फिरता हूं ।
फाग मास सतरंगी चूनर
दिया कन्हैया ने, जो राधा को
मैं तुम्हें समर्पण करता हूं
प्रेम पिपासा हूं गगन का पक्षी
अंजान दिशा में उड़ता हूं।
2-
ये जग है पराया
बिगड़ी बना लो अपनी है नर तन पाया,
अपना न कोई बंधू ये जग है पराया।
यहां नहीं रहना बंधू वापस सबको है जाना,
नही फंस जाना, नही है फंस जाना।
कर्मा का लेखा जोखा, जगत का माया,
दीन हीन दुखियों का है, दुखड़ा मिटाना।
देना सब हिसाब होगा कभी मन न भरमाना,
बड़े पुण्य पाया काया, न पड़े बुरी छाया।
धीरे धीरे चलते रहिए, नहीं रूक जाना ,
न वक्त को, गंवाना।
चलना है अकेला बंधू, हमें मंजिल तक है जाना,
अपना न कोई बंधू जग है पराया।
बिगड़ी बना लो अपनी है नर तन पाया,
अपना न कोई बंधू ये जग है पराया।
3 –
सीख लिया
चिन्ता तूं क्या व्यापेगा
करना चिन्ता हमने छोड़ दिया
जीवन की राहों का पथ अब
मैंने मोड़ लिया।
होंठों पर सज सकी हंसी न
दुख जीवन में यूं घोल दिया
इस जीवन से थे हम त्रसित
बहारों से नाता जोड़ लिया,
चिन्ता तूं क्या व्यापेगा।
झुलझ गई थी काया संग में
तब भी सब मंजूर किया
सहन शक्ति क्षीण हुई
दिशा तेरा हमने छोड़ दिया।
व्यथित ह्दय विह्वलता जीवन
है हमको मंजूर नहीं
चिन्ता तूं क्या व्यापेगा।
मैंने जीवन जीना सीख लिया
कहां रूक पाता हैं जीवन?
और कब, किसने जीना छोड़ दिया
बेबसी की छोड़ जिंदगी
उत्साह भरा अरमान पंख में
गिरना था ये भूल गया।
चिन्ता तूं क्या ही व्यापेगा
मैंने अब जीवन जीना
सीख लिया..!!
– चंद्रमती चतुर्वेदी
इसे भी पढ़ें …
https://www.lekhanshala.com/shiksha-vyavastha-par-hindi-articl/