” चलो जी लें ज़रा “
जीवन की दौड़ में
जीतने की होड़ में
खुशी की राह में
सफलता की चाह में
सुख पीछे छूट गया
……..चलो जी लें ज़रा
सपने संवारने में
कल को सुधारने में
आज कैसे बीत गया
वक्त जैसे रीत गया।
जीना ही भूल गया
……..चलो जी लें ज़रा।
जीवन से रार किया
कुछ से बिगाड़ किया
क्या कुछ जुगाड़ किया
सुख का उधार लिया
हँसना ही भूल गया
……..चलो जी लें ज़रा
अर्थ की व्यवस्था में
बोझ की अवस्था में
सबकी खुशी के लिए
सबकी हँसी के लिए
अपनी खुशी भूल गया
…….चलो जी लें ज़रा
– कवि सन्तोष कुमार झा,
सीएमडी कोंकण रेलवे
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