चल रे जीवन, कविता – जगदीश प्रसाद मंडल ( बिहार )

चल रे जीवन चलिते चल।
संगी बनि तूँ संगे चल
जौवन चल जुआनी चल
जिनगानी संग मर्दगानी चल
चिन्तन संग चिणमय चल।
चल रे जीवन चलिते चल।

यात्रीकेँ आराम कहाँ छै
यात्रा पथ विश्राम कहाँ छै।
ओर-छोर बिनु जहिना जिनगी
तहिना ई दुनियोँ पसरल छै।
पकैड़‍ मन तूँ चलिते चल।
चल रे जीवन चलिते चल।

ग्रह नक्षत्र सभटा चलै छै
सूर्ज तरेगन सेहो चलै छै
दोहरी बाट पकैड़‍ चान
अन्‍हार-इजोतक बीच चलै छै।
देखा-देखी चलिते चल।
चल रे जीवन चलिते चल।

बाटे-बाट छिड़ियाएल सुख छै
संगे-संग बिटियाएल दुख छै।
काँट-कुश लह लहैर-लहैर
गंगा-यमुना धार बहै छै।
परेख‍-परेख‍ तूँ चलिते चल।
चल रे जीवन चलिते चल।

किछु दैतो चल किछु लैतो चल
किछु कहितो चल किछु सुनितो चल
किछु समेटतो चल किछु बटितो चल
किछु रखितो चल किछु फेकितो चल
बिचो-बीच तूँ चलिते चल।
चल रे जीवन चलिते चल।

समय संग चल, समय संग चल
ऋृतु संग चल, ऋृतु संग चल
गति संग चल, गतिया गति चल
मति संग चल, मतिया मति चल
गति-मति संग चलिते चल।
चल रे जीवन चलिते चल।

गतिए संग लक्ष्‍मी चलै छै
सरस्वती मतिए चलै छै।
विश्वासक संग अशो चलै छै
तही बीच जिनगियो चलै छै।
साहससँ सन्तोष साटि-साटि
धैर्य-धारण धरिते चल
चल रे जीवन चलिते चल।

टुटए ने कहियो सुर-ताल
हुए ने कहियो जिनगी बेहाल।
जहिए समटल जिनगी चलतै
बनतै ने कहियो समय काल।
बुझि देखि तूँ चलिते चल
चल रे जीवन चलिते चल।

की लऽ कऽ आएल एतए
की लऽ कऽ जाइ जाइ छी?
सभ किछु एतए छोड़ि-छाड़ि
अजस-जस लऽ पड़ाइ छी।
निखैर-निखैर कऽ चलिते चल।
चल रे जीवन चलिते चल।

    – जगदीश प्रसाद मंडल 

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