जब रात अंधेरी कटे नहीं, काले से बादल छटे नहीं,
कोई अंश सवेरा दिखे न जब , अश्रु के सागर पटे नहीं।
कलियां मुरझाएं ना खिलने को, रुक जाए वक्त ना चलने को,
कैसे कोई धैर्य धरे पल भर, जब जख्म लगे ना सिलने को।
कोई आस दिखाई दे ना जब , कोई पास दिखाई दे ना जब,
हर ओर शत्रु दल बैठा हो , विश्वास दिखाई दे ना जब।
जानबूझ कैसे विश प्याला, स्वा हस्थों से पिया जाए,
बोलो फिर कैसे जिया जाए, बोलो फिर कैसे जिया जाए?
जब जीवन हमसे रूठ गया, हर एक साथी है छूट गया,
नींदे फिर कैसे आएंगी, जब सपना सारा टूट गया।
सुख भी बचा हो रक्त नहीं , मन की पीड़ा हो व्यक्त नहीं,
कैसे शक्ति दे स्वयं को हम, जब बाकी हम आसक्त नहीं।
जब मृत्यु द्वार पे आकुल हो, मस्तिष्क हृदय सब विहवल हो,
कैसे फिर निकले उपाय कोई , मन ही जब थक कर व्याकुल हो।
कैसे जीवन का लेखा जोखा, मृत्यु को ना दिया जाए,
बोलो फिर कैसे जिया जाए, बोलो फिर कैसे जिया जाए?
– गरिमा मिश्रा