बेटे भी बेटियों से कतई,
कमतर नहीं।
जिनके न हों बेटे,
उनसे मालूम कीजिये।
ख्याल रखते है माँ का,
बच्चे की तरह।
भागते हुए देते हैं सामान,
रसोई में जब भी पुकारती है माँ।
धुले हुए कपड़े,
छत पर सुखा आते हैं।
छीन कर बाल्टी कहते हुए,
छत पर धूप बहुत है।
बीमार हो जाओगी,
फिर से बनाकर,
खानी पड़ेगी हमें मैगी,
या पापा के हांथ की खिचड़ी।
जब देती है माँ उलाहना
कहकर कि,
बड़े स्वार्थी हो तुम,
हम फिर से बच्चे बन जाते हैं।
बनावटी भाव लिए चेहरे,
बयां करते हैं सबकुछ।
अरे यार मम्मी अब ज्यादा,
बक – बक मत करो तुम।
अलमारी में रखी हुई है,
दवाई तुम्हारी।
मैं पानी लिए भागकर आऊंगा,
आँख बंद करना और खा लेना।
जब कभी लेट जाओ,
बिस्तर पर।
परेशान हुए भागते आते हैं,
बाज़ार जाकर, समान भी लाते हैं।
कुछ पल ठहरते हैं,
फिर काम में लग जाते हैं।
बिना कहे एक भी शब्द,
सारे काम खत्म कर देते हैं।
व्यक्त नहीं कर पाते वो,
स्नेह भरे शब्दों में, भावों को।
बेटा – बेटी एक बराबर होते हैं,
बेटे – बेटियों से कतई कम नहीं होते हैं।
– राशि सिंह