बेजान लटक रहा हिंदी कविता – संघमित्रा चंचल

पंखे से
लटकते व्यक्ति का शव
कायरता का प्रमाण नहीं होती ।
उसके आशाओं के खत्म होने
सबका साथ छोड़ देने
कोई पास न होने
की गवाही होती है ।
कोई आंसुओं को रोक न लेने
कोई अपने अंक में भर न लेने
कोई समझा कर दुबारा खड़े न होने
की गवाही होती है ।
वो निर्जीव काया
उम्मीदों के खत्म हो जाने
दुःख के बने रहने
समाज के दुर्व्यवहार की
गवाही होती है ।
वो गवाही होती है
उस प्रत्येक व्यक्ति की
जो उससे जुड़ा है
उससे बात तो करता है।
पर समझता नहीं है,
उसे गले तो लगाता है
पर उसके दुखों को गले नहीं लगाता
उसे संभालता नहीं।
पंखे से
लटकते व्यक्ति का शव
प्रमाण होती है,
कि बढ़ती आबादी के बाद भी
वो कितना अकेला था।
प्रेम, परिवार, मित्र होने के बाद भी
कोई उसे, उसकी तरह
समझने वाला नहीं था ।
वो प्राण हीन देह
प्रमाण होता है
कि उसके सजीव होने पर
उसे कितना नोचा, खसोटा, खाया गया।
जीते जी उसे रोज मारा गया,
पहले उसकी आत्मा, उसके मन को
आहत किया गया
फिर उसके हृदय को
क्षत विक्षत किया गया।
फिर उसकी अपेक्षाओं को
खत्म कर दिया गया
और अंततः
अब उसका
शरीर भी!
हवा में पर
बेजान लटक रहा…
– संघमित्रा चंचल
इसे भी पढ़ें…
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments