शब्द की महिमा
जरूरी है आपसी बेबाकपना भी बना रहे,
साथ ही इसके,रिश्तों की गरिमा भी बनी रहे।
जोड़ते हैं शब्द ही, तोड़ते भी हैं शब्द ही,
शब्दों की कड़वाहट मे भी मिठास बनी रहे।
भर जाते हैं जख़्म, खंजर से हुए प्रहार के भी,
निरंकुश हुए शब्दों में भी प्रीत की डोर बनी रहे।
भाव मन के बदल भी जाते हैं मौसम की तरह,
जरूरी है लगाव की गर्माहट उम्र भर बनी रहे।
हालात एक जैसे रहते नहीं जीवन भर कभी,
दूरियों के बीच भी पास की उम्मीद बनी रहे।
पछतावे के तहत् भी प्रायश्चित होता नहीं कभी,
अलगाव के भीतर भी प्रेम की महिमा बनी रहे।
– मोहन तिवारी