बस याद ही याद आ रहा था कविता – दिव्य त्रिपाठी

बैठा था एक दिन भोर में,

कोई भी न दिख रहा था ।

 

हवाएं चल रही थी तूफानी,

दिल मेरा जोरों से धड़क रहा था।

 

विचार कर रहा था,

कि, मैं क्या कर रहा हूं ?

 

जिसने तोड़ दिया नाता,

क्यों उसे याद कर रहा था ?

 

दिया था कलम उसने मुझे ,

उसी से कुछ लिखने का मन कर रहा था।

 

गुजर गए थे कई महीने ,

फिर भी उसे न भूल पा रहा था ।

 

देखे उसे काफी दिन हो रहा था,

चेहरा उसी का सामने बार-बार आ रहा था।

 

खिलाया था उसने अपने हाथों से बनाकर ,

स्वाद उसका आज भी आ रहा था ।

 

वो नहीं आने वाला था फिर भी ,

बस उसी का इंतजार कर रहा था।

 

क्या उसके दिल में अब भी मैं हूं,

बस यही सोचे जा रहा था ।

 

उसे इतना नहीं चाहना था,

बस खुद को कोसे जा रहा था ।

 

इतना जल्दी सब खत्म हो गया

सोचकर यही आंसू गिर रहा था ।

 

उसके साथ बिताया एक – एक पल ,

बस याद ही याद आ रहा था ।

 –  दिव्य त्रिपाठी 

 

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