बोलबाला होईगा झूठ के, बढ़िगा अत्याचार,
घुसहा होईगें अधिकारी सब, जनता भई लाचार।
झूठा करै केस दरज, औ चले मुकदमा बाजी,
नोट दैके भवा रिपोटवा, रोवैं लड़कवा कै आजी।
घूस दइके पाए नौकरिया, बाकी सब बेरोजगार,
रहे गजब के पढ़े – लिखे उई , ठेला लगावैं बुद्ध बजार।
बचा न भरोसा न्याय पर, दीपकवो तले अंधियार,
पूछे चच्चा बार – बार, कहां गवा हमार अधिकार?
भूखे पेट फाग न होए, हवै दिलन में ई जिज्ञासा,
आज नहीं तो कल होई कुछ, बची यही अब आशा।
– जिज्ञासा