बची यही अब आशा अवधी कविता – जिज्ञासा

बोलबाला होईगा झूठ के, बढ़िगा अत्याचार,

घुसहा होईगें अधिकारी सब, जनता भई लाचार।

 

झूठा करै केस दरज, औ चले मुकदमा बाजी,

नोट दैके भवा रिपोटवा, रोवैं लड़कवा कै आजी।

 

घूस दइके पाए नौकरिया, बाकी सब बेरोजगार,

रहे गजब के पढ़े – लिखे उई , ठेला लगावैं बुद्ध बजार।

 

बचा न भरोसा न्याय पर, दीपकवो तले अंधियार,

पूछे चच्चा बार – बार, कहां गवा हमार अधिकार?

 

भूखे पेट फाग न होए, हवै दिलन में ई जिज्ञासा,

आज नहीं तो कल होई कुछ, बची यही अब आशा।

  – जिज्ञासा

 

 

 

 

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