आखिर कहां चले गए पापा आप….?
मुझे इस दुनिया में अकेले लड़ने के लिए छोड़कर, कभी खुद ही गिर रहा हूं, कभी खुद हीं उठ रहा हूं, समझ नहीं पा रहा हूं, कैसे खुद को संभाला जाए। पापा आज आपकी बहुत याद आ रही है, मानो असंख्य ब्रह्मांड इस दर्द को चीरते हुए, यह दर्द फिर भी कम नहीं हो रहा। जीवन मृत्यु के संघर्षों में उलझा हुआ हूं, पापा आप क्यों छोड़ कर चले गए हैं इस तनहा दुनिया में।
शायद अब मुझे खुद से ही नफरत होने लगी है। अब तो अपनों के नाम पर हमारे अपने ही मुझे ठगने लगे हैं। अपना – अपना कह कर लोगों ने शरीर से मानो जान भी निकाल लिए हों। जैसे, यह जिंदगी अब जिंदगी नहीं एक बोझ बन कर रह गई हो।
पापा प्लीज मुझे भी बुला लो ना अपने पास, आपका यह लाडला बेटा अब दुनिया से हार रहा है।
– अजीत बहादुर