अभी हो बुद्ध के तुम शांति पथ पर, अभी बढ़के बवंडर भींचना है।
अभी से हार अपनी मानना मत, अभी चलके सिकंदर जीतना है ।
आज के सुन लो भागीरथ भी तुम्ही हो, गंगा माँ तुमसे ही आएंगी धरा पर ।
आराधना शिव की करो खोलें जटाएं, चल चुकी हैं देख लो नभ से हहाकार।
चढ़कर विजय के सैंधवों पर, इतिहास में अपने भी कुछ पदचाप छोंड़ो।
राणा के वंशज तुम्ही हो सुन लो वीरों, सैंकड़ों अकबर को मुट्ठी में मरोड़ो।
अरे तुम ही शिवा जी हो, सुनो तुम पेशवा हो, और चौहानों की है तलवार तुमसे।
हाणा रानी सी सहन क्षमता तुम्हारी, सैंकड़ों दुष्टों का है उद्धार तुमसे।
यह पैर जिस दिन भी बढ़ेंगे देख लेना, विश्व में हर ओर जय जय ही मिलेगी।
हार भी बन हार आएगी गले में, शौर्य की दुल्हन भी तुमको ही वरेगी।
शत्रुओं के घर में घुसने की है क्षमता, जाओ जाकर के नया यलगार कर दो।
सौगंध तुमको है तुम्हारे देश की, युद्ध की भीषण उठो ललकार कर दो।
बहुत सुंदर पंक्तियां अंकित भाई ,,
देख लो नभ से हहाकर ये एक नया शब्द लगाया है,,अपने बहुत खूब