आज़ादी के मतवाले देशभक्ति कविता – विमल पाल

आजादी के मतवाले

परतंत्रता की जंजीरों में जकड़ा था अपना पूरा देश,

अंग्रेजों के अत्याचार से तृप्त हो गया था पूरा देश,

अत्याचार था इतना कि लोग त्राहि-त्राहि कर रहे थे,

फिरंगीओं के हाथों की कठपुतली सब के सब बन चले थे,

करता अगर कोई विरोध तो उसे सूली पर चढ़ा देते थे,

इसी कारण ना जाने कितनी मां के पुत्र छिन चले थे,

अन्न न था खाने को, थे रोटियों के लाले,

23 वर्ष के जवां मानो हो गए थे 80 के बूढ़े काले,

यह कू दशा देख अपने राष्ट्र की उन्होंने जंग का ऐलान कर दिया था,

आजादी के मतवालों ने स्वतंत्रता का बिगुल बजा दिया था,

फिर हुए आंदोलन ना जाने कितने कितनों ने बलिदान दिया,

कोई घर छोड़ा कोई जेल गया और किसी ने तो फांसी का फंदा चूम लिया,

बहन ने दी थी राखी मां ने अपनी कोख था बलिदान किया,

प्रथम क्षण था वह जब, सुहागन अपना सिंदूर का था दान किया।

– विमल पाल

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